नई दिल्ली | विशेष रिपोर्ट | 9 अगस्त 2025: एक ओर राखी की रेशमी डोरें भाइयों की कलाई पर बंध रही थीं, तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश देश के हर नागरिक के दिल में कुछ और गूंथ रहा था — रक्षा, विश्वास और एकता का बंधन।
रक्षाबंधन के इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने न केवल परिवारों को शुभकामनाएं दीं, बल्कि National Unity को फिर से केंद्र में लाते हुए स्वतंत्रता संग्राम की एक अमिट याद को भी जीवित किया।
“रक्षाबंधन सिर्फ परंपरा नहीं, यह प्रतिबद्धता है” — मोदी
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा:
“रक्षा बंधन के विशेष अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं।”
एक सीधी-सादी सी बात, लेकिन अगर आप ध्यान दें, तो इसमें उस भारत की झलक थी, जो सिर्फ त्योहार नहीं मनाता — बल्कि उसे एक राष्ट्रीय चरित्र में ढाल देता है।
इस भावना को आगे बढ़ाते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने भी पोस्ट किया कि यह पर्व भाई-बहन के बीच प्रेम, सुरक्षा और अटूट विश्वास का द्योतक है।
वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस अवसर पर देश की बहनों के सम्मान और समृद्धि की रक्षा करने का संकल्प दोहराया।
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भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास की वे आग की लपटें, जिनसे आज की रौशनी है
इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी ने भारत छोड़ो आंदोलन की 83वीं वर्षगांठ पर उन सेनानियों को नमन किया जिन्होंने आज़ादी की लौ को अपने खून से जलाए रखा।
“उन सभी वीरों को कोटिशः नमन, जिन्होंने गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनकर देश को नई दिशा दी,” — उन्होंने लिखा।
यह महज़ औपचारिक श्रद्धांजलि नहीं थी। यह उस National Unity की पुनः पुष्टि थी, जो उस दौर में ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख चुकी थी, और आज के दौर में देश को एकजुट रखने की रीढ़ बनती है।
रक्षा और स्वतंत्रता — दो कथाएँ, एक भावना
त्योहार जब सिर्फ त्योहार न रह जाएं, बल्कि संघर्षों की याद और वर्तमान की प्रेरणा बन जाएं — तो वे देश को गढ़ते हैं।
रक्षाबंधन, जहाँ एक बहन अपने भाई से सुरक्षा की आशा रखती है, वहीं “भारत छोड़ो आंदोलन” की पीढ़ी ने पूरे राष्ट्र से स्वतंत्रता की उम्मीद रखी थी। दोनों का केंद्र — आस्था और भरोसा।
मोदी का यह दोहरा संदेश — एक तरफ रक्षाबंधन की मिठास, और दूसरी ओर भारत छोड़ो आंदोलन की गंभीरता — आने वाली पीढ़ियों को बताता है कि राष्ट्र निर्माण एक परिवार की तरह ही होता है: रिश्तों से, त्याग से, और एकता से।
🧵 निष्कर्ष: राखी की डोर से राष्ट्रीय चेतना की डोर तक
भारत आज जहां खड़ा है, वहां तक पहुंचने में न केवल नीतियां, बल्कि भावनाएं भी जिम्मेदार रही हैं।
मोदी का यह संदेश कोई सामान्य बयान नहीं था — यह एक परंपरा और एक प्रेरणा के मिलन बिंदु पर दिया गया संवाद था।
यह रक्षाबंधन, केवल भाई-बहन के बीच नहीं रहा — यह देश और उसकी संतानों के बीच एक National Unity Pact बनकर उभरा।