Trump Putin Alaska Meet के पहले ट्रंप ने फिर उगली जुबान से आग, कहा – “दो मिनट में जान लूंगा डील होगी या नहीं”; यूक्रेन में मची खलबली
🕊️ बुंदेलखंड टुडे अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो/12 अगस्त 2025: अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मैदान में एक बार फिर शब्दों की तलवारें खिंच चुकी हैं। Trump Putin Alaska Meet को लेकर जैसे-जैसे वक्त नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे यूक्रेन की धड़कनें तेज़ होती जा रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने प्रेस वार्ता में जो कहा, वह न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि यह यूक्रेन की जमीनी चिंता को और गहरा करने वाला बयान भी था।
“बैठक के पहले दो मिनट में ही मैं जान जाऊंगा कि डील हो सकती है या नहीं” – डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति
शुक्रवार को होने वाली यह अलास्का मीटिंग सिर्फ दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच की मुलाकात नहीं है, बल्कि इस वक्त के सबसे बड़े भू-राजनीतिक संकट – रूस-यूक्रेन युद्ध – की दिशा तय करने वाली वार्ता मानी जा रही है।
🧭 ट्रंप की ‘फील-आउट मीटिंग’ और पुतिन की चुप्पी
व्हाइट हाउस से निकली ट्रंप की इस टिप्पणी को एक फील-आउट मीटिंग की तरह देखा जा रहा है, जहां शब्द कम और मनोविज्ञान ज़्यादा काम करेगा। ट्रंप ने कहा, यह मीटिंग “या तो उम्मीद जगाएगी या फिर मायूसी से भरी वापसी होगी।”
पर इस बीच एक बात जो सबसे ज्यादा डरावनी है — वो है पुतिन की चुप्पी। ना कोई बयान, ना कोई प्रतिक्रिया; और यही बात राजनीतिक विश्लेषकों को बेचैन कर रही है।
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🔥 जेलेंस्की की बेचैनी और डोनबास की डरावनी चर्चा
कीव में माहौल बेहद तनावपूर्ण है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, डोनबास क्षेत्र के बदले युद्धविराम जैसी डील की चर्चा हो रही है — और यहीं से उठती है यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की बेचैनी।
“यूक्रेन को बाहर रखकर की गई कोई भी डील हमारे लिए मान्य नहीं होगी” – यूक्रेनी सरकार
📊 विश्लेषकों की चेतावनी: ‘फेयर डील’ नहीं मिली तो होगा संकट
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह वार्ता रूस को वैश्विक वैधता प्रदान करती है, तो यह यूरोपीय सुरक्षा ढांचे के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। वे कहते हैं, यदि युद्धविराम ताकत के दम पर थोपा गया, तो यह केवल यूक्रेन ही नहीं, बल्कि समूचे यूरोप को अस्थिर कर सकता है।
“सवाल यह नहीं है कि डील होगी या नहीं, सवाल है – किस कीमत पर?” – एक वरिष्ठ विश्लेषक
🛑 निष्कर्ष: सिर्फ मुलाकात नहीं, भविष्य की दिशा तय करेगा यह संवाद
डोनाल्ड ट्रंप की ‘दो मिनट वाली थ्योरी’ महज़ राजनीतिक ड्रामा नहीं, बल्कि यह संकेत है कि अमेरिका-रूस संबंध अब एक नए मोड़ पर हैं। लेकिन असली सवाल यही रहेगा – क्या इसमें यूक्रेन को न्याय मिलेगा, या यह वार्ता भी सिर्फ कूटनीतिक शतरंज का एक और मूव बनकर रह जाएगी?