UP Flood में तबाही के साथ साथ अव्यवस्था भी उफान पर, राहत शिविरों में फूटा जनाक्रोश
हमीरपुर | 14 अगस्त 2025: एक तरफ उत्तर प्रदेश के कई जिलों में UP Flood ने तबाही मचा रखी है, वहीं दूसरी ओर हमीरपुर से आई एक और हैरान करने वाली खबर ने प्रशासनिक संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बाढ़ राहत सामग्री में सड़े आलू बांटे जाने की शिकायत सामने आने के बाद सदर तहसील के लेखपाल आदित्य द्विवेदी को सस्पेंड कर दिया गया है।
यह मामला न सिर्फ एक लापरवाही का प्रतीक है, बल्कि उन हजारों लोगों की पीड़ा का भी बयान है जो बाढ़ से सब कुछ गंवाने के बाद सिर्फ थोड़ी सी उम्मीद के सहारे जी रहे थे।
🌊 जब यमुना और बेतवा दोनों साथ उफनीं
लगभग 12 दिन पहले, यमुना और बेतवा नदियों में एक साथ आई बाढ़ ने हमीरपुर और इसके आसपास के इलाकों को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया।
प्रभावित गाँव:
- खालेपुरा
- पुराना जमुना घाट
- मेरापुर
- केसरिया का डेरा
- चंदुलीतीर
- कुछेछा, अमिरता, कलौलीतीर आदि
हजारों हेक्टेयर फसलें चौपट, सैकड़ों घर ढह गए, और सड़कों पर लोगों ने टेंट लगा लिए। राहत शिविरों में करीब 5,000 लोग शरण लिए हुए हैं, जबकि कई परिवार हाइवे के किनारे गुजर-बसर कर रहे हैं।
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🏚️ राहत शिविरों में उम्मीदें, फिर भी उदासी
प्रशासन ने शुरूआत में राहत शिविरों में 26 वस्तुओं की राहत सामाग्री किट उपलब्ध कराई। लेकिन कुछ ही दिनों में व्यवस्थाएं चरमराने लगीं। ग्रामीणों का आरोप है कि:
“कई जगह सर्वे नहीं हुआ, और जिनके घर तक राहत नहीं पहुँची, उन्हें सरकार की मदद एक सपना लग रही है।”
सबसे चौंकाने वाली घटना तब हुई, जब राहत किट में सड़े आलू बांटे जाने की शिकायत सामने आई। जिन लोगों ने सब कुछ गंवाया, उन्हें यह अपमान जैसा महसूस हुआ।
⚖️ लेखपाल सस्पेंड, जांच शुरू
एसडीएम सदर केडी शर्मा ने पुष्टि की कि राहत सामग्री वितरण में घोर लापरवाही बरती गई। सदर तहसील के लेखपाल आदित्य द्विवेदी को सस्पेंड कर दिया गया है। मामले की विस्तृत जांच चल रही है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
💰 आर्थिक सहायता और आगे की योजना
जिला आपदा विशेषज्ञ प्रियेश मालवीय के मुताबिक:
- अब तक 3,500 से अधिक बाढ़ पीड़ितों को राहत सामग्री दी जा चुकी है।
- 1,935 किसानों को आर्थिक सहायता मिल चुकी है।
- नुकसान का सर्वेक्षण अभी जारी है। सर्वे पूरा होने पर दैवीय आपदा राहत योजना के तहत सभी पात्र लोगों को मुआवज़ा मिलेगा।
✍️ पत्रकार की कलम से: सड़ा आलू नहीं, सड़ा सिस्टम
इस खबर में सिर्फ एक लेखपाल की गलती नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की सुस्ती नजर आती है। बाढ़ पीड़ितों को सड़े आलू देना केवल एक प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि उस पीड़ा पर नमक छिड़कने जैसा है जिसे ये लोग झेल रहे हैं। क्या यह न्याय है? क्या यही राहत है?