अब एफआईआर से लेकर थानों के नोटिस बोर्ड तक, जाति का नाम नहीं होगा दर्ज
लखनऊ (Mon, 22 Sep 2025)। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब प्रदेश पुलिस किसी आरोपी की जाति को न तो FIR में दर्ज करेगी और न ही गिरफ्तारी मेमो में। यहां तक कि थानों के नोटिस बोर्ड, हिस्ट्रीशीटर की सूची और वाहनों पर भी जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। शासन ने साफ किया है कि यह व्यवस्था तुरंत प्रभाव से लागू होगी, ताकि जाति के आधार पर समाज में कोई भेदभाव न पनपे।
FIR और गिरफ्तारी मेमो से हटेगा जाति कॉलम
लखनऊ पुलिस मुख्यालय से जारी आदेश के अनुसार, अब तक एफआईआर और गिरफ्तारी मेमो में आरोपित की जाति का कॉलम भरा जाता था। लेकिन नए शासनादेश के तहत इसे पूरी तरह से हटाने का फैसला लिया गया है। केवल SC/ST Act के मामलों में ही जाति का उल्लेख अनिवार्य होगा। बाकी सभी मामलों में वादी और आरोपित का सिर्फ नाम और सरनेम दर्ज होगा, जाति नहीं।
डीजीपी राजीव कृष्ण ने बताया कि इसके लिए NCRB (National Crime Records Bureau) को भी पत्र लिखा गया है, ताकि CCTNS (Crime and Criminal Tracking Network and System) के तहत ऑनलाइन एफआईआर के प्रोफार्मा से जाति का कॉलम स्थायी रूप से हटाया जा सके।
थानों के बोर्ड और हिस्ट्रीशीटर की लिस्ट भी बदलेगी
अब पुलिस थानों के बाहर लगे नोटिस बोर्डों पर हिस्ट्रीशीटरों या आरोपितों की सूची में उनके नाम के आगे जाति का उल्लेख नहीं होगा। अपराध से जुड़ी रिपोर्ट और वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे जाने वाले दस्तावेजों से भी जाति का कॉलम हटा दिया जाएगा। शासन का कहना है कि इस बदलाव से कानून-व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि समाज में समानता की भावना मजबूत होगी।
वाहनों और सार्वजनिक स्थानों पर भी नहीं दिखेगी जाति
शासनादेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब किसी भी वाहन पर जाति का नाम या संकेत नहीं लिखा जा सकेगा। साथ ही पुलिस थानों के नोटिस बोर्ड, साइनबोर्ड और सार्वजनिक स्थलों से भी जातीय नारे और संकेतक हटाए जाएंगे।
मुख्य सचिव दीपक कुमार ने रविवार को जारी आदेश में कहा कि इंटरनेट मीडिया पर भी जाति-आधारित कंटेंट की सख्त निगरानी की जाएगी। ऐसे किसी भी पोस्ट या नारे पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
जाति आधारित रैलियों पर भी रोक
नई व्यवस्था के तहत अब प्रदेश में जाति के नाम पर रैलियां, जुलूस या सार्वजनिक सभाएं आयोजित नहीं की जा सकेंगी। सरकार का मानना है कि यह कदम सामाजिक सौहार्द को बनाए रखने और जातिगत विभाजन को खत्म करने में मददगार साबित होगा।
सामाजिक संदेश
एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि यह निर्णय सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में एक गहरी पहल है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और विविधता वाले राज्य में, जहां जाति लंबे समय से राजनीति और समाज पर असर डालती रही है, वहां यह फैसला एक नई शुरुआत की तरह है।