नई दिल्ली, 9 अगस्त 2025। भारत और रूस के रिश्तों में आई ताजगी सिर्फ राजनयिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एक स्पष्ट Strategic Message भी है—खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका ने भारत पर व्यापारिक दबाव बढ़ा दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल की रूस यात्रा और वहाँ की गई उच्चस्तरीय बैठकों ने दुनिया को साफ कर दिया है कि भारत अब अपनी विदेश नीति में “मित्रता” से ज़्यादा “स्वायत्तता” को तरजीह दे रहा है।
पुतिन से डोभाल की मुलाकात: केवल औपचारिकता नहीं, संदेश भी है
बीते दिनों NSA डोभाल ने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। यह सिर्फ एक राजनयिक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि एक strategic alignment का हिस्सा थी। डोभाल ने न सिर्फ पुतिन को पीएम मोदी की ओर से भारत आने का न्योता सौंपा, बल्कि यह संकेत भी दिया कि भारत अपने पुराने सहयोगियों के साथ खड़ा है—बिना किसी दबाव के।
Strategic Message अमेरिका को: दबाव नहीं, संतुलन चाहिए
ट्रंप प्रशासन द्वारा रूसी तेल खरीद पर भारत को दंडित करते हुए 50% टैरिफ लगाना सीधे-सीधे भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न है। ऐसे माहौल में डोभाल की रूस यात्रा और पीएम मोदी की पुतिन से फोन पर बात, दोनों ही घटनाएं अमेरिका को कूटनीतिक जवाब देती दिख रही हैं।
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रूसी डिप्टी पीएम से सैन्य-तकनीकी सहयोग की बातचीत
डोभाल की डिप्टी प्राइम मिनिस्टर डेनिस मंटुरोव से मुलाकात ने इस यात्रा को और भी विशेष बना दिया। इस दौरान दोनों नेताओं ने सैन्य-तकनीकी क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाओं की समीक्षा की और ऊर्जा, रक्षा एवं रणनीतिक मामलों में आगे की योजनाएं बनाईं। यह बैठक दर्शाती है कि भारत और रूस अब केवल ऐतिहासिक साझेदार नहीं, बल्कि भविष्य की जरूरतों के अनुरूप रणनीतिक साझेदार हैं।
भारत-रूस की दोस्ती: समय की कसौटी पर खरी
रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइंगू से भी डोभाल की बातचीत हुई, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत-रूस की मित्रता समय के हर इम्तिहान में खड़ी उतरी है। यह बयान सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि सामरिक और रणनीतिक सच्चाई को दर्शाता है।
पुतिन की भारत यात्रा, मोदी की चीन यात्रा—ग्लोबल बैलेंसिंग एक्ट
जहाँ पुतिन भारत आने के लिए सहमत हो गए हैं, वहीं पीएम मोदी इस महीने चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। इसी बीच ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा से भी बातचीत हुई है। इन सभी घटनाओं का संयोजन अमेरिका को साफ-साफ बताता है कि भारत किसी एक ध्रुव पर टिकने वाला देश नहीं है, बल्कि उसका नजरिया व्यापक, संतुलित और आत्मनिर्भर है।