⚠️ “Kishtwar Cloudburst” से दहला जम्मू-कश्मीर, श्रद्धालुओं के लिए मचैल यात्रा बनी त्रासदी
किश्तवाड़, जम्मू-कश्मीर — श्रावण मास की आस्था यात्रा इस बार चशोती गांव में मातम में बदल गई। गुरुवार दोपहर करीब 12:30 बजे किश्तवाड़ जिले के मचैल माता यात्रा मार्ग पर स्थित चशोती गांव में Kishtwar Cloudburst के चलते एक भीषण आपदा ने ऐसा रौद्र रूप लिया कि पूरे इलाके में चीख-पुकार और सन्नाटा एक साथ गूंजने लगे।
हिमालय की गोद में बसा यह शांत और सुरम्य गांव कुछ ही मिनटों में पानी, मलबे और तबाही के सैलाब में डूब गया। गांव के ऊपरी हिस्सों में अचानक फटा बादल, और फिर वह जो हुआ — वह किसी दुःस्वप्न से कम नहीं।
📉 तबाही का आंकड़ा: 38 मृतक, 120 घायल, 200 लापता
गांव के आधे हिस्से को निगल गया सैलाब। दर्जनों वाहन बह गए, 12 घर पूरी तरह ढह गए और अनेक अन्य मकानों को आंशिक क्षति पहुँची। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, अब तक 38 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 98 को सुरक्षित निकाला गया है। लेकिन 200 से अधिक लोग अब भी लापता हैं, जिनमें श्रद्धालु, स्थानीय ग्रामीण और लंगर से जुड़े सेवादार शामिल हैं।
🛐 मचैल माता यात्रा पर भारी पड़ी प्रकृति की मार
किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव से आगे आठ किलोमीटर दूर मचैल चंडी माता मंदिर तक हर वर्ष हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस बार भी लंगर और सेवाओं की तैयारियाँ जोरों पर थीं, लेकिन मौसम की मार ने सब कुछ मलबे में बदल दिया।
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि उधमपुर के सैला तालाब क्षेत्र से संचालित एक विशाल लंगर पूरी तरह तबाह हो गया। उस समय वहां दोपहर का भोजन परोसा जा रहा था और बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
🚨 रेस्क्यू में जुटे लोकल हीरो
सैलाब के ठीक बाद मचैल यात्रियों को मोटरसाइकिल से पहुंचाने वाले स्थानीय चालक सबसे पहले मदद को आगे आए। चशोती पुल से महज़ 200 मीटर दूर अपने स्टॉप पर खड़े इन चालकों ने बिना किसी निर्देश के राहत कार्य में कूद पड़ना शुरू किया। उन्होंने घायलों को हमोरी लंगर तक पहुंचाया जहां स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों और यात्रियों ने मिलकर फ़र्स्ट एड शुरू किया।
हालांकि, ढाई घंटे की देरी से पहुंची मेडिकल टीम दवाओं और उपकरणों की भारी कमी से जूझती रही। यह बताता है कि आपदा प्रबंधन की तैयारियाँ अभी भी जमीनी हकीकत से बहुत पीछे हैं।
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⚠️ सुरक्षा एजेंसियों से भी संपर्क टूटा
घटना स्थल पर सेना, सीआईएसएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात थीं, लेकिन बादल फटने के बाद उनसे भी संपर्क नहीं हो पा रहा है। स्थिति इतनी गंभीर है कि चशोती अब एक कटे हुए द्वीप जैसा प्रतीत हो रहा है, जहां न तो नेटवर्क है, न पर्याप्त संसाधन।
🗣️ स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
जिला प्रशासन की ओर से बताया गया है कि राहत और बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी हैं। प्रभावित क्षेत्र में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, सेना और वायुसेना को भी सक्रिय किया गया है। लेकिन दुर्गम भूगोल और खराब मौसम बचाव कार्यों को बाधित कर रहे हैं।
✍️ पत्रकार की कलम से: सिर्फ बारिश नहीं, ये चेतावनी है
यह हादसा महज़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, बल्कि यह एक खुली चेतावनी है — पर्यावरणीय असंतुलन, बेतरतीब निर्माण और अनियोजित तीर्थ यात्रा व्यवस्थाएं किस कदर विनाशकारी हो सकती हैं। सवाल उठता है कि क्या आने वाले वर्षों में सरकार और स्थानीय प्रशासन इस दर्द से कुछ सीखेंगे?