नई दिल्ली (Tue, 30 Sep 2025) – सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली की निचली अदालतों के दो न्यायिक अधिकारियों को सात दिन का अनिवार्य प्रशिक्षण लेने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने यह कदम उन Bail Orders में पाई गई गंभीर खामियों को देखते हुए उठाया है, जो 1.9 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी मामले में दिए गए थे।
मामला क्या है?
यह मामला एम/एस नेटसिटी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड की अपील से जुड़ा है। कंपनी का आरोप था कि आरोपी दंपति, शिक्षा राठौर और उनके पति, ने जमीन स्थानांतरित करने के नाम पर पैसे लिए, जबकि जमीन पहले से बंधक थी और बाद में तीसरे पक्ष को बेच दी गई। शिकायत 2017 में दर्ज की गई थी और इसके आधार पर 2018 में प्रीत विहार थाने में FIR दर्ज हुई।
आरोपी दंपति ने कई बार अग्रिम जमानत मांगी, जिसे ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट ने फरवरी 2023 में खारिज कर दिया। इसके बावजूद अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट (ACMM) ने नवंबर 2023 में उन्हें जमानत दे दी। सत्र न्यायाधीश ने अगस्त 2024 में इस आदेश को बरकरार रखा और दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कंपनी की चुनौती खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर के अपने फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट और सत्र न्यायालय ने मामले को “बहुत सरल” तरीके से देखा और अहम तथ्यों को नजरअंदाज किया। अदालत ने विशेष रूप से एसीएमएम के इस निर्णय पर चिंता व्यक्त की कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद हिरासत की जरूरत नहीं रही। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानूनी दृष्टि से पूरी तरह असंगत करार दिया।
साथ ही अदालत ने जांच अधिकारी (IO) की भूमिका पर भी सवाल उठाए और दिल्ली पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे जांच अधिकारियों के आचरण की समीक्षा करें और आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करें।
प्रशिक्षण और न्यायिक सुधार
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जिन दो न्यायिक अधिकारियों ने विवादित Bail Orders पारित किए, उन्हें दिल्ली न्यायिक अकादमी में विशेष प्रशिक्षण लेना होगा। इस प्रशिक्षण में जोर इस बात पर रहेगा कि उच्च अदालतों के आदेशों का महत्व समझा जाए और न्यायिक कार्यवाही में सतर्कता बरती जाए।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने ACMM को कहा कि वे इस मामले की सुनवाई को तेजी से पूरा करें ताकि न्याय में अनावश्यक देरी न हो।