छठ पूजा को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ घोषित कराने की दिशा में बड़ा कदम, संगीत नाटक अकादमी को भेजा गया प्रस्ताव
पटना/नई दिल्ली – भारत की एक अद्भुत लोक आस्था, अनुशासन और पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक छठ महापर्व (Chhath Puja 2025) अब वैश्विक पहचान की ओर बढ़ रहा है। केंद्र सरकार ने यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची (Intangible Cultural Heritage List) में छठ पर्व को शामिल कराने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी है। इस पहल से बिहार, पूर्वांचल और नेपाल के मिथिला क्षेत्र में हर्ष और गौरव की लहर दौड़ पड़ी है।
🏛️ केंद्र की ओर से ऐतिहासिक पहल
7 जुलाई को छठी मैया फाउंडेशन के अध्यक्ष संदीप कुमार दुबे द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर कार्रवाई करते हुए, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने इसे आगे बढ़ाया है। अवर सचिव अंकुर वर्मा ने इस संदर्भ में एक पत्र संगीत नाटक अकादमी (SNA) को भेजा है, जिसमें Chhath Puja 2025 को यूनेस्को के प्रतिनिधि सूची में नामांकन के लिए आवश्यक जांच और प्रक्रिया शुरू करने को कहा गया है।
🌞 चार दिनों का संयम, भक्ति और प्रकृति का उत्सव
छठ पूजा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह प्रकृति, परंपरा और पवित्रता का समग्र मेल है। सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के इस महापर्व में श्रद्धालु अत्यंत कठोर उपवास रखते हैं, जिससे शारीरिक अनुशासन और मानसिक साधना का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत होता है।
“छठ पूजा में समर्पण, पर्यावरण से जुड़ाव और पारिवारिक एकजुटता जैसी मानवीय भावनाएं निहित हैं। इसे यूनेस्को की सूची में शामिल करना भारत की सांस्कृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाएगा।” – लोक संस्कृति विशेषज्ञ
🧘♀️ Chhath Puja 2025: पहले दिन से शुरू होती है शुद्धता की साधना
छठ की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है। व्रती पवित्र नदी या तालाब में स्नान कर स्वयं को शुद्ध करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं — जिसमें कद्दू, चने की दाल और चावल शामिल होता है, वह भी सिर्फ सेंधा नमक के साथ। अनुष्ठान की यह सादगी ही इसकी अद्वितीयता और आध्यात्मिकता की पहचान है।
🙏 36 घंटे का निर्जल उपवास: आस्था की परीक्षा
दूसरे दिन से शुरू होता है 36 घंटे का निर्जल उपवास, जिसमें भक्त प्याज, लहसुन, मसाले और पशु उत्पाद त्यागते हुए पारंपरिक चूल्हों पर प्रसाद बनाते हैं। यह तपस्या भक्ति की चरम सीमा को दर्शाती है, और व्रती इसे अपनी आत्मिक शक्ति का प्रतीक मानते हैं।
🎶 छठ गीतों की लोक ध्वनि, सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा
छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले पारंपरिक गीत “कांच ही बांस के बहंगिया…”, “उग हे सूरज देव…” जैसे भावपूर्ण गीत सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि पीढ़ियों से जुड़ी विरासत का मौखिक संरक्षण हैं। यही कारण है कि यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का उत्सव भी है।
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🌏 क्या है यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची?
यूनेस्को द्वारा शुरू की गई यह सूची उन परंपराओं, अनुष्ठानों और सांस्कृतिक गतिविधियों को दर्ज करती है जो मानवता की साझा विरासत हैं लेकिन जिनका कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता। अगर छठ पूजा इस सूची में शामिल होती है, तो यह न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में इसकी सांस्कृतिक गूंज और मान्यता को नया आयाम देगी।
🛕 बिहार से नेपाल तक फैली लोक श्रद्धा
छठ पूजा केवल बिहार या उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं। यह पर्व आज दिल्ली, मुंबई, बंगाल, नेपाल, फिजी, मॉरीशस और अमेरिका तक में मनाया जा रहा है। विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के लिए यह संस्कृति की जड़ से जुड़ने का माध्यम बन चुका है।
🔔 निष्कर्ष: Chhath Puja 2025– आस्था का नहीं, संस्कृति का उत्सव
Chhath Puja 2025 को अगर यूनेस्को की विरासत सूची में स्थान मिलता है, तो यह भारत की लोक परंपराओं की वैश्विक मान्यता का क्षण होगा। यह केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि अनुशासन, नारी सम्मान, प्रकृति पूजन और सामाजिक समरसता का ऐसा संगम है, जिसकी मिसाल विश्व में विरली ही है।