नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की गिरफ्तारी से संबंधित विवादास्पद विधेयकों पर विचार के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में शामिल न होने का फैसला लिया है। पार्टी का कहना है कि इन विधेयकों का असली उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिराना है। समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने भी जेपीसी में अपने सदस्य नामित नहीं करने का निर्णय लिया है।
विवादास्पद विधेयकों का विरोध
आम आदमी पार्टी के निर्णय से यह साफ हो गया कि पार्टी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को 30 दिन तक हिरासत में रखने और उन्हें पद से हटाने का प्रावधान करने वाले तीन विवादित विधेयकों पर विचार के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल नहीं होगी। इस फैसले के पीछे पार्टी का आरोप है कि इन विधेयकों का उद्देश्य विपक्षी सरकारों को गिराना और उन्हें कमजोर करना है।
तृणमूल और सपा का भी विरोध
तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी जेपीसी में अपने सदस्य नामित नहीं करने का फैसला लिया है। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने इसे ‘बेमतलब’ करार दिया। उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि सरकार के इस कदम की कई दलों ने आलोचना की है। ओ’ब्रायन ने कहा कि यह सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा है और इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
संजय सिंह का आरोप
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने भी ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए इस विधेयक की आलोचना की। उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचारियों के सरदार भ्रष्टाचार के खिलाफ विधेयक कैसे ला सकते हैं? इस विधेयक का असली उद्देश्य नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाना और सरकारों को गिराना है। इसीलिए अरविंद केजरीवाल जी और हमारी पार्टी ने जेपीसी में शामिल न होने का फैसला किया है।”
तृणमूल और सपा के बयान
तृणमूल कांग्रेस ने शनिवार को जेपीसी को ‘तमाशा’ करार दिया था। पार्टी ने कहा कि वह इस समिति में अपना सदस्य नहीं भेजेगी। इसी बीच, समाजवादी पार्टी द्वारा भी इस समिति में किसी सदस्य को नामित किए जाने की संभावना न के बराबर है।
विधेयक और जेपीसी का गठन
केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 बुधवार को लोकसभा में पेश किए गए थे और इन्हें संसद की एक संयुक्त समिति को भेजा गया था। इन विधेयकों पर विचार के लिए जेपीसी का गठन किया गया है, लेकिन विपक्षी दलों के विरोध के बाद अब यह राजनीति का नया मुद्दा बन गया है।
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