नई दिल्ली, 22 अक्टूबर 2025 – अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट 5 नवंबर को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ की वैधता पर सुनवाई करेगा। मामला सिर्फ टैरिफ का नहीं है; दांव पर हैं Trump Emergency Powers की सीमाएँ। ट्रंप ने आपात शक्तियों का इस्तेमाल कर कई देशों पर टैरिफ लगाए हैं, जिन्हें निचली अदालतों ने अवैध बताया। अब उच्चतम न्यायालय को तय करना है कि क्या राष्ट्रपति की शक्तियों की कोई कानूनी हद है या नहीं।
निचली अदालतों का रुख
ट्रंप ने टैरिफ लगाने के लिए इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनामिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का सहारा लिया, जो राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों में आर्थिक कदम उठाने की अनुमति देता है। लेकिन कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक्ट सामान्य व्यापार घाटे या आर्थिक असंतुलन को टैरिफ का औचित्य नहीं दे सकता। तीन निचली अदालतें भी ट्रंप के कदम को अवैध ठहरा चुकी हैं।
राष्ट्रपति का दावा
संविधान के अनुसार टैरिफ तय करने की शक्ति कांग्रेस को दी गई है, लेकिन ट्रंप ने इसे Trump Emergency Powers के तहत अपनी कार्यकारी शक्तियों में शामिल किया। स्टील और एल्युमीनियम जैसे सेक्टरों के लिए टैरिफ उन्हें सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर उचित लगे। ट्रंप ने अपने सार्वजनिक बयानों में कहा है कि टैरिफ से अरबों डॉलर का राजस्व आ रहा है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है।
IEEPA की सीमाएँ
दो फेडरल कोर्ट और यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने स्पष्ट किया है कि IEEPA राष्ट्रपति को इस तरह टैरिफ लगाने की शक्ति नहीं देती। एक्ट 1977 में बनाया गया था ताकि राष्ट्रपति की आपात शक्तियों को सीमित किया जा सके, न कि बढ़ाया। ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि पुराने प्रेसीडेंट्स ने इसी तरह के कदम उठाए, लेकिन आलोचक इसे संविधान की मर्यादा पर हमला मानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का महत्व
सुप्रीम कोर्ट का फैसला केवल टैरिफ के वैधता पर नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि Trump Emergency Powers की कोई कानूनी हद है या नहीं। अगर कोर्ट ट्रंप के IEEPA टैरिफ को खारिज कर देता है, तब भी प्रशासन अन्य कानूनी रास्तों से इसी तरह के आर्थिक दबाव के उपाय अपनाने की संभावना रखता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुनवाई अमेरिकी लोकतंत्र और राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करने के लिहाज से ऐतिहासिक हो सकती है।













