चुनाव आयोग की सफाई: ‘ड्राफ्ट सूची है, गलतियां सुधारी जाएंगी’; विपक्ष ने उठाए भरोसे पर सवाल
नई दिल्ली/पटना – बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) पर देश की सर्वोच्च अदालत में छिड़ी बहस ने एक बार फिर से नागरिकता, पहचान और मतदान अधिकारों को लेकर उठ रहे सवालों को सुर्खियों में ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि आधार कार्ड और वोटर ID जैसे दस्तावेज नागरिकता के निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकते।
❝मामला दस्तावेजों का नहीं, भरोसे का है❞ – सुप्रीम कोर्ट
मंगलवार को हुई सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने साफ कहा कि यह पूरा मामला तथ्यों से ज्यादा भरोसे की कमी को दर्शाता है। अदालत के अनुसार, अगर कुल 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया में भागीदारी दिखाई है, तो करोड़ों नामों के हटाए जाने का दावा संख्यात्मक रूप से कमजोर पड़ता है।
इस बहस में चुनाव आयोग ने यह भी बताया कि करीब 6.5 करोड़ मतदाताओं को कोई नया दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं पड़ी, क्योंकि उनके या उनके परिवारजनों के नाम पहले से ही 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज थे।
📄 आधार और वोटर ID पर क्यों उठे सवाल?
वकील कपिल सिब्बल, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने दलील दी कि आम नागरिकों के पास आधार, राशन कार्ड और वोटर ID होते हुए भी, उन्हें पहचान के लिए अयोग्य ठहराया जा रहा है। इस पर अदालत ने सवाल उठाया:
“अगर किसी के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है, तो क्या उसे केवल दावे के आधार पर मतदाता मान लिया जाए?”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकता का निर्धारण केवल एक दस्तावेज से नहीं हो सकता, बल्कि प्रामाणिकता की बहुस्तरीय जांच आवश्यक है।
📊 Supreme Court On SIR: “ड्राफ्ट लिस्ट है, फाइनल नहीं”
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि 1 अगस्त को जारी की गई सूची ड्राफ्ट रोल है, और इसमें मौजूद त्रुटियां अंतिम सूची से पहले सुधारी जाएंगी। उन्होंने कहा:
“हमारा उद्देश्य किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि मतदाता सूची को सटीक और पारदर्शी बनाना है।”
अंतिम सूची 30 सितंबर को जारी होगी और उससे पहले सभी आपत्तियों पर विचार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि बड़े पैमाने पर नाम काटे जाने की पुष्टि हुई, तो अदालत तत्काल हस्तक्षेप करेगी।
🔎 राजनीतिक और सामाजिक संगठनों की आपत्तियां
इस मामले ने सियासी रंग भी पकड़ लिया है। विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के ज़रिए कुछ विशेष वर्गों के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं।
टीएमसी की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल, एनसीपी की सुप्रिया सुले, आरजेडी के मनोज झा, शिवसेना (उद्धव) के अरविंद सावंत, JMM के सरफराज अहमद, सीपीआई, सीपीआईएमएल जैसे दलों के नेता और PUCL, ADR, योगेंद्र यादव जैसे संगठनों ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
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योगेंद्र यादव ने दावा किया कि बिहार की वयस्क जनसंख्या 8.18 करोड़ है, जबकि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में सिर्फ 7.9 करोड़ नाम हैं। उन्होंने कहा कि कहीं जिंदा लोग मृत घोषित हुए हैं, तो कहीं मृतक के नाम अब भी सूची में मौजूद हैं।
🔔 निष्कर्ष: सिर्फ नाम जोड़ने या हटाने की बात नहीं
“Supreme Court On SIR” की यह सुनवाई देश में मतदाता पहचान, नागरिकता और लोकतंत्र की बुनियाद को लेकर गहरी चर्चा छेड़ती है। यह मामला अब केवल दस्तावेजों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें विश्वास, पारदर्शिता और समानता की संवैधानिक भावना भी जुड़ गई है।