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CP राधाकृष्णन बने नए Vice President of India, राष्ट्रपति मुर्मु ने दिलाई शपथ

On: September 12, 2025
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Vice President of India
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नई दिल्ली, 12 सितंबर 2025। देश ने अपना नया उपराष्ट्रपति पा लिया है। सीपी राधाकृष्णन ने शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में आयोजित गरिमामय समारोह में उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही राधाकृष्णन भारत के 15वें Vice President of India बन गए हैं।

बी सुदर्शन रेड्डी को हराकर हासिल की जीत

इस बार का उपराष्ट्रपति चुनाव खासा चर्चित रहा। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी को मात दी। 781 सांसदों में से 767 ने मतदान किया, जो 98.2 प्रतिशत की रिकॉर्ड वोटिंग रही। इसमें से राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, जबकि रेड्डी के हिस्से 300 मत आए।

राज्यसभा के महासचिव और निर्वाचन अधिकारी पीसी मोदी ने नतीजों की घोषणा की और राधाकृष्णन की जीत को औपचारिक रूप से प्रमाणित किया।

पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे के बाद हुआ चुनाव

यह चुनाव तब हुआ जब पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को अचानक इस्तीफा दे दिया था। उस समय राजनीतिक हलकों में कयासों का दौर शुरू हुआ और नई जिम्मेदारी के लिए कई नाम उछले। आखिरकार एनडीए ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन पर भरोसा जताया और यह दांव उनके लिए जीत का सबब बना।

प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई

चुनाव परिणाम आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर राधाकृष्णन को बधाई दी। उन्होंने विश्वास जताया कि नवनिर्वाचित Vice President of India संसदीय संवाद को और समृद्ध करेंगे तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाएंगे।

महाराष्ट्र में खाली हुआ राज्यपाल का पद

सीपी राधाकृष्णन फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल थे। उपराष्ट्रपति बनने के बाद यह पद खाली हो गया है। फिलहाल गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। राष्ट्रपति भवन की ओर से इस संबंध में आधिकारिक अधिसूचना भी जारी की गई है।

उपराष्ट्रपति की भूमिका पर एक नजर

भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है और संसदीय कामकाज को सहजता से चलाने में उनकी भूमिका अहम होती है। यह सिर्फ संवैधानिक पद नहीं बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और संतुलन की कुंजी भी है। राधाकृष्णन के सामने अब वही चुनौती है कि वे संवाद, सहमति और संसदीय परंपराओं को और मजबूती दें।

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