नई दिल्ली (24 अक्टूबर 2025) – दुनिया भर में रूस के तेल और गैस कारोबार पर अमेरिका और यूरोपीय संघ की कड़ी नज़र है, लेकिन भारत और चीन जैसे बड़े उपभोक्ता देशों को पेट्रोलियम आपूर्ति जारी रखने के लिए रूस सक्रिय प्रयास कर रहा है। ऐसे समय में, पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच अगले कुछ हफ्तों में होने वाली बैठक में Petroleum Pipeline परियोजना पर चर्चा होना तय है।
रूस ने पहले ही चीन के साथ “पावर ऑफ साइबेरिया-1” पाइपलाइन बिछा कर अपनी आपूर्ति क्षमता बढ़ा दी है। अब, भारत के साथ एक नई पाइपलाइन परियोजना पर भी विचार किया जा रहा है। कूटनीतिक सूत्रों का कहना है कि यह चर्चा केवल ऊर्जा आपूर्ति तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापार और रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूती देने वाली है।
2016 में गोवा में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और पुतिन ने भारत में गैस और तेल पाइपलाइन बिछाने पर सहमति जताई थी। इसके बाद भारतीय कंपनी ईआइएल और रूसी कंपनी गैजप्रोम ने तीन संभावित मार्गों का प्रस्ताव तैयार किया। इन मार्गों की लंबाई 4,500 से 6,000 किलोमीटर थी, और कुल अनुमानित लागत लगभग 25 अरब डॉलर रखी गई थी। हालांकि, भारी लागत और दूरी के कारण इसे तब आगे नहीं बढ़ाया गया।
अब फिर से इस परियोजना पर बात हो रही है। पिछले ढाई वर्षों में यह स्पष्ट हो गया है कि रूस भारत के लिए एक भरोसेमंद और किफायती तेल साझेदार है। यही कारण है कि भारत इस पहल को ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानता है। पाइपलाइन परियोजना वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद दोनों देशों को लंबी अवधि में स्थिर आपूर्ति और आर्थिक लाभ दे सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस वार्ता में परियोजना की लागत, मार्ग और तकनीकी चुनौतियों पर भी विस्तार से चर्चा होगी। यदि यह योजना अमल में आती है, तो यह न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगी, बल्कि वैश्विक तेल बाजार में भारत की स्थिति को भी मजबूत करेगी।
राष्ट्रपति पुतिन जल्द ही भारत दौरे पर आएंगे और यह बैठक दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा होगी। इस वार्ता के नतीजे आने वाले महीनों में भारत-रूस संबंधों और ऊर्जा रणनीति पर स्पष्ट प्रभाव डाल सकते हैं।













