🐾 दिल्ली की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने के आदेश के बाद छिड़ा पशु-अधिकार बनाम जनसुरक्षा का विवाद, कांग्रेस नेताओं ने दी संवेदनशील प्रतिक्रिया
🖋️ ब्यूरो रिपोर्ट | नई दिल्ली| 12 अगस्त 2025 – देश की राजधानी में सड़कों पर विचरण करने वाले आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया ताज़ा आदेश अब एक राष्ट्रीय बहस का रूप ले चुका है। अदालत के निर्देशों के जवाब में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया पर अपनी चिंता प्रकट की है। उनका कहना है कि “कुत्ते सुंदर और सौम्य प्राणी होते हैं — और इस तरह की सख्ती उनके साथ अन्याय है।”
“दिल्ली जैसे महानगर में शेल्टर की पहले ही भारी कमी है। ऐसे में कुत्तों को जबरन वहां भेजना उनके लिए मानवीय संकट जैसा होगा।”
— प्रियंका गांधी, X (पूर्व Twitter) पर पोस्ट करते हुए
🔍 Supreme Court Dog Case: ‘सड़कें खाली होनी चाहिए’
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR क्षेत्र की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर सरकारी आश्रय गृहों में भेजने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने दिया, जिसमें जनसुरक्षा को प्राथमिकता बताते हुए कहा गया:
“चाहे कुत्ते नसबंदीशुदा हों या नहीं — नागरिकों को डर से मुक्त वातावरण मिलना चाहिए।”
इसके अनुसार, MCD, NDMC, दिल्ली सरकार, और NCR के अधिकारी शेल्टर की व्यवस्था करेंगे।
🧠 पशुप्रेम या सार्वजनिक खतरा? कांग्रेस नेताओं की भावनात्मक अपील
प्रियंका गांधी से पहले राहुल गांधी ने भी इस फैसले पर चिंता जताते हुए इसे “विज्ञान और करुणा से भटकाव” करार दिया था। राहुल ने कहा:
“सड़क पर रहने वाले ये जानवर समाज का हिस्सा हैं। इनकी देखभाल के लिए नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखरेख जैसे विकल्प बेहतर हैं।”
🗣️ मेनका गांधी का विरोध: “यह आदेश अव्यावहारिक है”
पशु अधिकारों की प्रबल समर्थक और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि:
- ये फैसला वित्तीय रूप से अव्यावहारिक है
- इससे शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होगा
- शेल्टर में भीड़ होने से कुत्तों की मृत्यु दर बढ़ सकती है
⚖️ सवाल उठता है – समाधान क्या है?
विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली जैसे महानगरों में जहां पहले से संसाधनों की कमी है, वहां कानूनी आदेशों की व्यावहारिकता पर विचार करना जरूरी है। यदि उद्देश्य समाज को सुरक्षित बनाना है, तो रास्ता ऐसा होना चाहिए जिसमें बेजुबान जीवों के लिए करुणा भी हो।
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🧾 निष्कर्ष: क्या पशु अधिकारों और जनसुरक्षा के बीच संतुलन संभव है?
Supreme Court Dog Case की यह बहस दरअसल एक गहरे सवाल को जन्म देती है — क्या हम जनसुरक्षा के नाम पर करुणा को भूलते जा रहे हैं?
दिल्ली की सड़कों पर आवारा कुत्ते ज़रूर हैं, पर उनकी ज़िंदगी भी हमारी ज़िम्मेदारी का हिस्सा है। हल शायद कठोरता नहीं, समझदारी है।